Tuesday, December 22, 2009

बाघ जीता और मनुष्य हारा!

बाघ जीता और मनुष्य हारा!

  • बिपिन चन्द्र चतुर्वेदी

आपसे एक सवाल पूछा जाय कि यदि एक मनुष्य और एक बाघ दोनों पानी में डूब रहे हैं तो आप किसे बचाना चाहेंगे। शायद स्वाभाविक रूप से आप कहेंगे कि मनुष्य को बचाना चाहेंगे। लेकिन सवाल है कि बाघ हमारे देश के जंगलों से विलुप्त हो रहे हैं तो शायद आप बाघ के प्रति सहानुभूति रखेंगे। चलिए इस सवाल को जरा विस्तार से देखते हैं। यदि आपसे कहा जाय कि किसी परियोजना से करीब 1 लाख लोग विस्थापित होंगे और यही कोई 2 या 3 बाघ विस्थापित होंगे तो आपकी सहानुभूति किसके प्रति होगी। शायद विस्थापन की आर्थिक और समाजिक लागत के आधार पर देखें तो स्वाभाविक तौर पर आप मनुष्यों के पक्ष में सोचेंगे। हां, यह भी ध्यान रखें कि जब किसी परियोजना से लोग विस्थापित होते हैं तो उनके साथ उनके पालतू पशु भी काफी संख्या में विस्थापित होते हैं। लेकिन हमारे देश के मंत्रीगण आपसे कुछ अलग राय रखते हैं, जहां मनुष्यों के मुकाबले बाघ को ज्यादा तरजीह दी जा रही है।

जी हां, भारत की बहुचर्चित नदीजोड़ परियोजना के अंतर्गत प्रस्तावित केन बेतवा परियोजना के मामले में मनुष्यों के मुकाबले बाघ को ज्यादा तरजीह मिली है। ऐसा हमारे देश के केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री श्री जयराम रमेश कह रहे हैं। अभी हाल ही में उन्होंने कहा है कि, ‘‘मुझे यह जानकर धक्का लगा कि अभी तक जिस एकमात्र नदीजोड़ परियोजना ‘केन-बेतवा’ पर काम आगे बढ़ा है, उसमें पन्न्ना बाघ अभयारण्य भी शामिल है।’’ इस नदीजोड़ परियोजना से पन्ना बाघ अभयारण्य का कम से कम 140 हेक्टेयर क्षेत्र पानी में डूब जाने की आशंका है। वन्यजीव विशेषज्ञ पी. के. सेन का कहना है कि, ‘‘पन्ना वन्यजीव अभयारण्य की भूमि के कुछ हिस्सों को स्थानांतरित करने का प्रस्ताव पर्यावरण मंत्रालय के समाने रखा जाना है, लेकिन वन्यजीवों के आवास के खतरे को देखते हुए इस पर किसी कीमत पर सहमति नहीं दी जानी चाहिए।’’ मध्य प्रदेश का पन्ना राष्ट्रीय अभयारण्य 974 वर्ग किमी. में फैला हुआ है और भारत का जाना माना अभयारण्य है। अब यह समाचार अधिकारिक है कि पन्ना राष्ट्रीय अभयारण्य में बाघ नहीं बचे हैं, जहां करीब 6 साल पहले 40 से ज्यादा बाघ थे। पन्ना में बाघ न होने की पुष्टि मध्य प्रदेश के वन मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल ने कुछ माह पहले अधिकारिक रिपोर्ट में की थी। इससे पहले प्रोजेक्ट टाइगर के पूर्व प्रमुख पी. के. सेन के नेतृत्व में विशेष जांच दल ने पन्ना राष्ट्रीय उद्यान जाकर मामले की जांच की और दावा किया है कि पन्ना में एक भी बाघ नहीं बचे हैं। दल ने जून 2009 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। अब वन विभाग ने पन्ना अभयारण्य में मादा बाघ लाकर फिर से बाघ युक्त करने की कवायद शुरू की है। अभयारण्य में अब मात्र दो बाघिने हैं जो कि कान्हा राष्ट्रीय उद्यान एवं बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान से लाई गई हैं। अब इस अभयारण्य के अस्तित्व पर नदीजोड़ परियोजना का खतरा मंडरा रहा है।

मध्य प्रदेश में केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना के कारण लगभग 8,650 हेक्टेयर भूमि डूबने की आशंका है, जिसमें लगभग 6,400 हेक्टेयर वन भूमि और शेष 2,171 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है। इसमें कुछ भूमि पन्ना अभयारण्य की है। गौरतलब है कि ये डूब तो सिर्फ परियोजना के लिए प्रस्तावित मुख्य बांध से संभावित है। जबकि पूरी परियोजना के तहत 231 किमी लम्बी सम्पर्क नहर के अलावा 6 अन्य बड़े बांध भी बनाए जाने हैं। ये 6 बांध इसलिए प्रस्तावित हैं क्योंकि केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना से जो मौजूदा सिंचित क्षेत्र प्रभावित होंगे उनकी भरपायी की जा सके। लेकिन मजेदार बात यह है कि राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (एनडब्ल्यूडीए) द्वारा प्रकाशित संभाव्यता रिपोर्ट में इन सहायक बांधो के बारे में विस्तार से जिक्र नहीं है, इसलिए इनसे प्रभावित होने वाले क्षेत्रों का भी ब्यौरा उपलब्ध नहीं है। हालांकि इन सबकी विस्तृत जानकारी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) में होनी चाहिए। सूत्रों के अनुसार 15 करोड़ रुपये की व्यय वाली डीपीआर एनडब्ल्यूडीए द्वारा तैयार करके 31 दिसम्बर 2008 को केन्द्र सरकार को सौंप दी गई है। चूंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने इस पर अपनी सहमति नहीं दी है इसलिए इसे संबंधित विभागों के सामने नहीं पेश किया गया है।

अगस्त 2005 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव एवं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल गौर ने प्रधामंत्री डा. मनमोहन सिंह को डीपीआर बनाने के लिए सहमति पत्र सौंपा था। उस समय चैतरफा हल्ला ऐसे मचा कि दोनों राज्यों के बीच परियोजना बनाने के लिए सहमति हो गई। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश को प्रस्तावित परियोजना में कई आपत्तियां हैं। इसके अलावा यह भी स्पष्ट है कि परियोजना से मध्य प्रदेश के क्षेत्रों को ज्यादा फायदा होगा जबकि उत्तर प्रदेश का ज्यादा इलाका प्रभावित होगा। परियोजना के क्रियान्वयन के लिए केन्द्र सरकार ने एक बोर्ड के गठन का सुझाव दिया है, जिसमें केन्द्र के सदस्यों सहित मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश सरकार के सदस्य शामिल रहेंगे।

नदीजोड़ योजना के कार्यदल के स्रोत के अनुसार परियोजना के लिए मध्य प्रदेश में छतरपुर एवं पन्ना जिले की सीमा पर केन नदी पर डौढन में 73.2 मीटर ऊंचा मुुख्य बांध प्रस्तावित है। इस डौढन जलाशय से 10,200 लाख घनमी. पानी नहर में मोड़ा जाना है। सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई 231 किमी होगी, जिसमें 2 किमी सुरंग शामिल है। सम्पर्क नहर के मार्ग में पड़ने वाले 6.45 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई के लिए 31,960 लाख घनमी. पानी इस्तेमाल होगा। इसमें 1.55 लाख हेक्टेयर उत्तर प्रदेश में एवं 4.90 लाख हेक्टेयर मध्य प्रदेश में सिंचित होना प्रस्तावित है। इस नहर से 120 लाख घनमी. पानी घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग के लिए दिया जाएगा। नहर के मार्ग में रिसाव से 370 लाख घनमी. पानी का क्षति होगा।

इस परियोजना के सम्बंध में एक और विवादास्पद बात यह है कि इसकी संभाव्यता ही स्थापित नहीं हो सकी है। इस तरह जब किसी परियोजना की संभाव्यता स्थापित न हो तो उसके आधार पर बनने वाले डीपीआर की क्या प्रासंगिकता रहेगी? देश भर में कई प्रमुख विशेषज्ञों के अलावा दिल्ली स्थित संस्था सैण्ड्रप ने एक अध्ययन में परियोजना के संभाव्यता रिपोर्ट (फिजिबिलिटी रिपोर्ट) पर गंभीर सवाल उठाए हैं। सैण्ड्रप के समन्वयक हिमांशु ठक्कर का मानना है कि केन-बेतवा परियोजना के लिए किया गया जल संतुलन आकलन ही गलत है, इसके अलावा प्रस्तावित सिंचाई लाभ का वितरण भी असमानतापूर्ण है। जबकि पन्ना बाघ अभयारण्य का जो मामला केन्द्रीय मंत्री अब उठा रहे हैं उसके बारे में 5 साल पहले ही अध्ययन के माध्यम से अगाह किया गया था।

आखिर जो भी हो लेकिन अब सच खुलकर सामने आ रहा है। यह बात समझ से परे है कि जिस परियोजना में स्थानीय स्तर पर काफी विरोध एवं उत्तर प्रदेश सरकार की आपत्ति है उस पर आगे बढ़ते रहने का क्या औचित्य है? एक अनुमान के अनुसार बांध के डूब क्षेत्र में करीब 65,000 से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे, जबकि अन्य सहायक बांधों एवं सम्पर्क नहर से प्रभावित होने वाले लोगों को जोड़ा जाय तो विस्थापितों संख्या काफी ज्यादा होगी। अब हमारे पर्यावरण मंत्री के संवेदनशीलता के बारे में क्या कहा जा सकता है कि उन्हें कुछ वन्यजीवों एवं उनके 140 हेक्टेयर क्षेत्र के डूब का संकट तो दिखता है लेकिन हजारो प्रभावित होने वाले लोगों एवं करीब 10,000 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन डूब का दर्द नहीं दिखता। शायद इसमें उनकी कोई गलती नहीं है, क्योंकि वे तो अपने विभाग से संबंधित बातों की ही चिंता करेंगे! तो फिर उन हजारों लोगों की चिंता कौन करेगा जो कि एक विवादास्पद परियोजना से विस्थापित होने वाले हैं?

(प्रकाशित: आफ्टर ब्रेक, 21 दिसम्बर 2009)

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