Tuesday, December 22, 2009

क्या प्रदान किया गया पुरस्कार भी वापस हो सकता है?


क्या प्रदान किया गया पुरस्कार भी वापस हो सकता है?

  • बिपिन चन्द्र चतुर्वेदी
भारत के इतिहास में शायद ही ऐसा कोई वाकया सुनने को मिलता हो जब किसी प्रमुख संगठन, संस्था या कंपनी को दिया गया पुरस्कार वापस लेने की सिफारिश की गई हो। लेकिन शायद ऐसा पहली बार होने की उम्मीद है। वह भी भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किए गए पर्यावरण उत्कृष्टता पुरस्कार के मामल में। जी हां, भारत में सन 2009 के लिए पर्यावरण उत्कृष्टता पुरस्कार एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एनएचपीसी लिमिटेड को प्रदान किया गया था। लेकिन जिस परियोजना को आधार मानकार एनएचपीसी को इस पुरस्कार के लिए चुना गया था, वह आधार ही झूठा निकला। एनएचपीसी भारत की एक प्रमुख सार्वजनिक कंपनी है और देश भर में सबसे ज्यादा पनबिजली परियोजनाएं स्थापित करने वाली कंपनी है।

दि एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) के पर्यावरण उत्कृष्टता पुरस्कार 2009 की जूरी पैनल (निर्णायक मंडल समिति) ने एनएचपीसी लिमिटेड को पर्यावरण उत्कृष्टता के लिए 5 जून 2009 को दिया गया पुरस्कार वापस लेने का फैसला किया है, ऐसा महत्वपूर्ण सूत्रों से पता चला है। उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री प्रशांत भूषण एवं बांधो, नदियों एवं लोगों का दक्षिण एशिया नेटवर्क (सैण्ड्रप) सहित कई लोगों और संगठनों ने जूरी को 17 अगस्त 2009 को यह कहते हुए पत्र लिखा था कि अवार्ड देने के लिए जिस परियोजना (जम्मू एवं कश्मीर में उरी पनबिजली परियोजना) का हवाला दिया गया था उस परियोजना में अपने कार्य प्रदर्शन के आधार पर एनएचपीसी अवार्ड के योग्य नहीं है। इसके अलावा, कंपनी के सामाजिक व पर्यावरणीय मुद्दों पर निराषाजनक ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए भी वह एक पर्यावरण उत्कृष्टता अवार्ड के योग्य नहीं है।

सैण्ड्रप के समन्वयक श्री हिंमाशु ठक्कर के अनुसार उरी पनबिजली परियोजना में एनएचपीसी के कार्य प्रदर्शन और इस मुद्दे पर एनएचपीसी एवं टेरी द्वारा तैयार केस स्टडी एवं परियोजना को कोष प्रदान करने वाली स्वीडिश इंटरनेशनल डेवलपमेंट एजेंसी (सीडा) द्वारा की गई समीक्षा सहित अन्य अधिकृत दस्तावेजों के विस्तृत अध्ययन के बाद ही एनएचपीसी को अवार्ड देने का विरोध करते हुए पत्र लिखा गया।

इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस (यानी 5 जून 2009) पर, एक बहु-प्रचारित कार्यक्रम में, भारत की राष्ट्रपति ने पर्यावरणीय उत्कृष्टता और कारपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के लिए विभिन्न विजेताओं को टेरी पुरस्कार प्रदान किया। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे. एस. वर्मा एवं टेरी के महानिदेशक डा. आर. के. पचैरी के नेतृत्व वाली अवार्ड की जूरी और भारत के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की उपस्थिति में, एनएचपीसी ने श्रेणी -।।। (रुपये 1000 करोड़ से ज्यादार कारोबार वाली कंपनियों के लिए) के लिए प्रथम पुरस्कार हासिल किया। अवार्ड ‘‘एनएचपीसी के केस स्टडी पोस्ट कंसट्रक्शन इनवायर्मेंटल एंड सोशल इंपैक्ट असेशमेंट स्टडी आॅफ 480 मेगावाट उरी पाॅवर स्टेशन इन जम्मू एंड कश्मीर’’ के लिए दिया गया था।

प्राप्त जानकारी के अनुसार पत्र मिलने के बाद जूरी पैनल ने मिलकर पत्र में उठाए गए मुद्दों पर टेरी एवं एनएचपीसी की प्रतिक्रिया की जांच की। ऐसा लगता है कि जूरी पैनल ने एनएचपीसी को पुरस्कार देने के निर्णय पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है। टेरी के कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया है कि एनएचपीसी ने जिस तरह सार्वजनिक पटल पर पुरस्कार का इस्तेमाल किया उस पर भी जूरी ने नाखुशी जाहिर की। यह उल्लेखनीय है कि एनएचपीसी के शेयरों के प्रारंभिक प्रस्ताव के विज्ञापन में, कंपनी ने इस अवार्ड को इस तरह से गुमराह करते हुए इस्तेमाल किया जैसे कि कंपनी को पर्यावरण संरक्षण के समग्र उत्कृष्टता के लिए पुरस्कृत किया गया हो।

शेयर बाजार में जब कोई नया शेयर प्राथमिक रूप से अधिसूचित होता है तो उसे कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। इनमें निवेशकों से शेयर में निवेश के लिए विज्ञापन देन प्रमुख है। जाहिर है कि कंपनियां शेयर के लिए दिये जाने वाले विज्ञापनो में अपनी उपलब्धि का गुणगान करती है। आम निवेशकर्ता उन्हीं विज्ञापनों के आधार पर निवेश करते हैं। लेकिन यदि ऐसे गुणगान के आधार पर जब शेयर निवेशकर्ताओं को आबंटित हो जाय और शेयर पूंजी बाजार में अधिसूचित हो जाय तब उसके बाद बता चले कि सारी बातें खोखली हैं तो निवेशकों का विश्वास टूटता है।

दुर्भाग्यवश इस मुद्दे पर टेरी ने कोई सर्वाजनिक वक्तव्य नहीं जारी की है। टेरी ने लिखे गए पत्र की सिर्फ स्वीकृति दी और विस्तृत जांच का आश्वासन दिया है लेकिन सितंबर माह के अंत तक कोई जवाब नहीं दिया है। हम देखते हैं कि एनएचपीसी ने अवार्ड लेने के लिए न सिर्फ गलत तस्वीर पेश की बल्कि वह जूरी पैनल एवं अवार्ड को कलंकित करने के लिए भी दोषी है। जब भारत की राष्ट्रपति इस अवार्ड को देने में शामिल रही हैं तो, एनएचपीसी सर्वोेच्च पद को एवं पुरस्कार समारोह में शामिल महत्वपूर्ण लोगों को विवाद में घसीटने के लिए भी दोषी है। इसी तरह, टेरी भी यथोचित जानकारी हासिल न करने एवं जूरी पैनल को गुमराह करने की दोषी है। वास्तव में टेरी के वेबसाइट में उपलब्ध एनएचपीसी पर टेरी की केस स्टडी में एनएचपीसी द्वारा किए गए दावे के समय, महत्व एवं विवरणों की समझ इतनी गलत है जैसे कि लगता है टेरी के सदस्यों ने एनएचपीसी के सभी दावों को बगैर आशंका के स्वीकार कर लिया है। यहां पर मामला आपसी हितों का भी है, क्योंकि टेरी ने हाल के सालों में एनएचपीसी से रुपये 1 करोड़ से ज्यादा का कोष प्राप्त किया है। यह आपसी हित स्वतंत्र जूरी सदस्यों के लिए मायने नहीं रखती है, लेकिन यह जूरी पैनल में शामिल टेरी के सदस्यों और यथोचित अभ्यास करने वाले टेरी के सदस्यों के संदर्भ में निश्चत तौर पर मायने रखती है। हालांकि, जब हम इसे लिख रहे हैं, तब तक टेरी ने अपने वेबसाइट में पुरस्कार विजेताओं की सूची से एनएचपीसी का नाम नहीं हटाया है, लेकिन उम्मीद करते हैं कि टेरी जल्द ही उसे हटाएगी।

चूंकि यह मामला महत्वपूर्ण सार्वजनिक हित का है, और यह मुद्दा करीब डेढ़ माह पहले उठाया गया था, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि टेरी अवार्ड की स्थिति को स्पष्ट करते हुए तत्काल इस मुद्दे पर स्पष्ट सार्वजनिक वक्तव्य जारी करे। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पूरे मामले पर स्वतंत्र संगठन व व्यक्तियों द्वारा आपत्ति दर्ज की गई। इस तरह देश में तमाम कंपनियां शेयर बाजार में अपने को ऊंचा उठाने के लिए निवेशकों को गुमराह करती हैं। ऐसे में क्या सेबी जैसी संस्था की जिम्मेदारी नहीं बनती है कि निवेशकों के साथ धोखाधड़ी न हो और पूंजी बाजार में उनका विश्वास कायम रहे।

(प्रकाशित: आफ्टर ब्रेक, 12 अक्तूबर 2009)

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